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Story of Mahavir Hanuman's Son
दोस्तों! आज की कहानी में मैं आपको हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की कहानी के बारे में बताऊंगा| पवन- पुत्र हनुमान बाल ब्रह्मचारी थे| लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है| आज की कहानी में हम उनके बारे में ही पढ़ेंगे|
मकरध्वज की कहानी
हनुमान-पुत्र (मकरध्वज) की कहानी
दोस्तों! आज की कहानी में मैं आपको हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की कहानी के बारे में बताऊंगा| पवन- पुत्र हनुमान बाल ब्रह्मचारी थे| लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है| आज की कहानी में हम उनके बारे में ही पढ़ेंगे|
वाल्मीकि की रामायण के अनुसार लंका जलाते समय आग के कारण महावीर हनुमान जी को बहुत पसीना आ रहा था|उनकी पूछ में आग लगने के कारण| हनुमान जी अपनी पूंछ की आग को बुझाने के लिए समुद्र में छलांग लगाई तो उनके शरीर से पसीने की एक बड़ी सी बूंद समुद्र में गिर गई|
उस समुद्र में एक बड़ी सी मछली ने उस बूंद को भोजन समझ कर, वह मछली उस बूंद को निकल गई| उस मछली के पेट में जाकर वह बूंद एक शरीर में बदल गई| उसके कुछ दिनों के बाद पाताल लोक के राजा अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया|
जब वे लोग उस मछली का पेट काट रहे थे तो उसके शरीर में से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला था| वह लोग उस वानर को पातालपुरी के राजा अहिरावण के पास ले गए| अहिरावण ने उस वानर को अपनी पातालपुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया| यही वानर हनुमान जी का पुत्र मकरध्वज के नाम से प्रसिद्ध हुआ|
जब राम और रावण का युद्ध हो रहा था तब रावण के आज्ञा अनुसार अहिरावण ने राम-लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें पातालपुरी ले गया| उनके अपहरण से वानर सेना काफी परेशान हो गई और अकुशल हो गई| लेकिन रावण के भाई विभीषण ने यह बात हनुमान को बता दी|
राम और लक्ष्मण की सहायता के लिए हनुमान जी पातालपुरी पहुंचे और जब वे पातालपुरी के द्वार पर एक वानर को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए थे| उन्होंने उस वानर मकरध्वज से उसका परिचय पूछा| मकरध्वज ने अपना परिचय देते हुए बोला- “मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूं और मैं पातालपुरी का द्वारपाल हूं|”
मकरध्वज की बात सुनकर हनुमान जी क्रोधित होकर बोले- “ यह तुम क्या बोलते जा रही हो| दोस्त मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूं| मैंने विवाह नहीं करने का तय किया है| मैं विवाह नहीं कर सकता| फिर तुम मेरे पुत्र कैसे हो|” जब हनुमान जी ने अपना परिचय मकरध्वज को बताया तो यह सुनकर मकरध्वज हनुमान जी के चरणों में गिर गया और उन्हें पर प्रणाम करके अपनी कथा बताना शुरू किया| मकरध्वज की कथा सुनकर हनुमान जी ने भी मान लिया कि वह उन्हीं का पुत्र है|
लेकिन हनुमान जी ने यह कहकर मकरध्वज को कहा कि वह राम और लक्ष्मण को लेने के लिए द्वार के अंदर जा रहा है| और जैसे ही हनुमान जी द्वार के अंदर जाने लगते हैं तो मकरध्वज उन्हें रोक लेता है| मकरध्वज हनुमान जी से कहता है- “पिता जी! मैं जानता हूं कि मैं आपका पुत्र हूं लेकिन मैं अभी मेरे स्वामी पाताल पुरी के अहिरावण की सेवा कर रहा हूं| मैं उनकी आज्ञा के अनुसार आपको आगे नहीं जाने दे सकता|”
हनुमान जी ने मकरध्वज को समझाने का बहुत प्रयास किया पर मकरध्वज द्वार से नहीं हटा| फिर हनुमान जी और मकरध्वज में युद्ध हो गया| हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूंछ बांध दिया और द्वार के अंदर प्रवेश हो गए| हनुमान जी द्वार के अंदर जाते ही देवी माता के मंदिर में गए| जहां राम जी और लक्ष्मण जी की बलि चढ़ने वाली थी| अहिरावण के द्वारा हनुमान जी को देकर चामुंडा देवी पाताल लोक से चली गई और हनुमान जी ने देवी का रूप ले लिया था| और उनकी जगह खड़े हो गए|
उसके कुछ समय बाद अहिरावण वहां पर आया और अपनी पूजा अर्चना करके राम और लक्ष्मण की बलि चढ़ाने वाला था| लेकिन अहिरावण ने जैसे ही अपनी तलवार से राम और लक्ष्मण की बलि देने वाला था| तभी अचानक हनुमान जी ने उसकी तलवार से ही अहिरावण का वध कर दिया| उन्होंने राम और लक्ष्मण को बंधन मुक्त करा दिया|
राम जी की नजर हनुमान की पूंछ पर पड़ी| उसी पूछ में मकरध्वज बंधा हुआ था| राम जी ने हनुमान से पूछा - “ हनुमान! यह तुम्हारी पूछ में कौन बंदा हुआ है| देखने में बिल्कुल तुम्हारे जैसा ही दिखता है| तुम इसे खोल दो|” हनुमान जी ने मकरध्वज का परिचय करा कर उसे खोल दिया| खुलने के बाद मकरध्वज ने राम जी को प्रणाम किया और उनके पैर छुए|
बाद में राम जी ने मकरध्वज का राज्याभिषेक करके उससे पातालपुरी का नया राजा घोषित कर दिया और उसे कहा कि वह अपने पिता हनुमान जी की तरह दूसरों की सेवा करें| यह सुनकर मकरध्वज ने तीनों को प्रणाम किया| तीनों मकरध्वज को आशीर्वाद देकर वहां से चले गए|
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दोस्तों! तो आशा है आपको हनुमान के पुत्र मकरध्वज की कहानी अच्छी लगी होगी| अगर अच्छी लगी तो Comment करके बताइये|😋
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