(महादेव का क्रोध) - Pauranik Kahani in Hindi

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Pauranik Kahaniyan


दोस्तों! आज की कहानी दिलचस्प होने वाली है| इस कहानी में हम जानेंगे कि शिव जी, ब्रह्मा जी और विष्णु जी में से कौन सबसे श्रेष्ठ है? तो कहानी को अंत तक पूरा पढ़िए|😊


महादेव का क्रोध 


Pauranik kahani in hindi

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 महर्षि भृगु ब्रह्मा जी के एक मानस पुत्र थे| उनकी पत्नी का नाम ख्याति था| वे दक्ष की पुत्री थी| महर्षि ऋषि महर्षि सप्त ऋषि मंडल के एक ऋषि थे| वे सावन और भाद्रपद में भी भगवान सूर्य के रथ पर सवार रहते थी|


  एक बार की बात है| एक दिन नदी के तट पर सरस्वती माता, ऋषि मुनि एकत्रित होकर इस विषय पर चर्चा कर रहे थे कि ब्रह्मा जी, शिव जी और श्री विष्णु जी में सबसे बड़े और श्रेष्ठ कौन है? इसका कोई उत्तर न निकलता देख उन्होंने त्रिदेवो की परीक्षा लेने का निश्चय किया और ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि भृगु को इस कार्य के लिए नियुक्त किया गया| 


महर्षि भृगु सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास गए| महर्षि भृगु ने ना तो ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और नहीं उनकी स्तुति की| यह देखकर ब्रह्माजी क्रोधित होकर क्रोध के कारण उनका मुंह लाल हो गया| आंखों में अंगारे दिखने लगे लेकिन ब्रह्मा जी फिर यह सोच कर कि यह उनके पुत्र है उन्होंने अपने मन में उठे क्रोध को रोक लिया| 


 फिर वहां से महर्षि भृगु कैलाश गए| देवों के देव भगवान महादेव ने देखा कि महर्षि  भृगु आ रहे है तो शिव जी प्रसन्न होकर अपने आसन पर बैठे और उन्हें गले लगाने के लिए अपनी भुजाएं फैला दी| किंतु उनकी परीक्षा लेने के लिए महर्षि भृगु उनका आलिंगन (गले लगाने) अस्वीकार करते हुए बोले - “ महादेव! आप हमेशा वेदों और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं| दुस्टो और पापियों को आप जो वरदान देते हैं उनसे सृष्टि पर भयंकर संकट आ जाता है| इसलिए मैं आपका आलिंगन कदापि स्वीकार नहीं करूंगा|” 


महर्षि भृगु की यह बात सुनकर भगवान शिव जी क्रोध से तिलमिला उठे| उन्होंने जैसे ही अपना त्रिशूल उठाकर उन्हें मारना चाहा वैसे ही मां पार्वती ने बहुत अनुनय विनय कर किसी प्रकार से  शिव जी का क्रोध शांत किया|


 इसके बाद भृगु मुनि वैकुंठ लोक गए भगवान विष्णु जी से मिलने| उस समय भगवान श्री विष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर लेटे थे| महर्षि भृगु अंदर जाकर विष्णु जी के कक्ष पर एक  तेज लात मारी| 


भक्तवत्सल भगवान विष्णु जी तुरंत ही अपने आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम करके उनके चरण सहलाते हुए बोले - “ भगवान! आपके पेर  पर चोट तो नहीं लगी| कृपया इस आसन पर विश्राम कीजिए| भगवान मुझे आपके शुभ आगमन का ज्ञान नहीं था इसलिए मैं आपका स्वागत नहीं कर सका| आपके चरणों का स्पर्श तीर्थों को पवित्र करने वाला है| आपके चरणों के छूने से आज मैं धन्य हो गया|”


   भगवान विष्णु जी का यह प्रेम व्यवहार देखकर महर्षि भृगु की आंखों से आंसू बहने लगे| उसके महर्षि भृगु वापस ऋषि-मुनियों के पास लौट आए और ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी और शिव जी के यहां के सभी अनुभव उन्होंने विस्तार से सबको बताएं| उनके अनुभव को सुनकर सभी ऋषि मुनि बड़े हैरान रह गए और उनके सभी सवाल दूर हो गए| तभी से वह भगवान श्री विष्णु जी को सर्वश्रेष्ठ मानकर उनकी पूजा अर्चना करने लगे| 

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वास्तव में उन ऋषि-मुनियों ने अपने लिए नहीं बल्कि मनुष्य के सवालों को मिटाने के लिए ही ऐसी लीला रची थी|

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