(शनिदेव का घमंड) - Shani Dev Story in Hindi

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Shani Dev Story in Hindi

दोस्तों! आज की कहानी मजेदार होने वाली है| इस कहानी में हम जानेंगे कि शनिवार का व्रत क्यों रखा जाता है? दोस्तों इसके पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है| जो आप पढ़ेंगे| तो आशा है आपको यह कहानी पसंद आएगी|😊

जब टूटा शनिदेव का घमंड

Shani dev story in hindi

Shani dev ki story in Hindi


एक दिन किसी गांव में एक बार भारी वर्षा हुई बारिश के अभाव से अकाल पड़ गया| उसी गांव में एक कोशिक नाम के मुनि अपने परिवार के साथ रहते थे| जब बारिश आई और अकाल पड़ गया तब कौशिक मुनि अपने परिवार के लालन और पोषण के लिए अपना ग्रह स्थान छोड़कर दूसरी जगह अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ चले गए| फिर भी परिवार का भरण-पोषण कठिन होने पर दुखी होकर उन्होंने एक पुत्र को बीच रास्ते में छोड़ दिया


   वह बालक जिनको कौशिक  मुनि छोड़ देते है|वह भूख और प्यास से रोने लगा था तभी उस बालक ने कुछ ही दूरी पर एक पीपल का पेड़ देखा और एक जल का कुंड भी देखा उसने अपनी भूख शांत करने के लिए पीपल के पत्तों को खाया और कुंड का जल पीकर उसने अपनी प्यास बुझाई|


  वह बालक हर दिन इसी तरह पत्ते और पानी पीकर और तपस्या कर के समय  गुजारने लगा| तभी एक दिन  वहां देवर्षि नारद पहुंचे| बालक ने उनको नमन किया| नारद मुनि इस दशा में बालक की विनम्रता देखकर खुश हो गए| उन्होंने तुरंत बालक को वेदों की शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया|


 उन्होंने उसे ओम नमो भगवते वासुदेवाय के मंत्र की दीक्षा भी दी| वह बालक श्री भगवान विष्णु के मंत्र का जप कर तप करने लगा| नारद मुनि उस बालक के साथ ही रहे| उस बालक की तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए| भगवान विष्णु जी ने प्रकट होकर बालक से कुछ मांगने को कहा| 


उस बालक ने भगवान विष्णु जी से भगवत भक्ति का वर मांगा| तब भगवान विष्णु ने बालक को योग और ज्ञान की शिक्षा दी जिससे वह परम ज्ञानी महर्षि बन गया| 


1 दिन उस बालक के मन में एक जिज्ञासा पैदा हुई उसने नारद मुनि से पूछा -“ नारद जी! इतनी छोटी उम्र में मैं क्यों मेरे माता और पिता से अलग हो गया? क्यों मुझे इतनी पीड़ा भोगना पड़ रही है?आपने मुझे संस्कारित कर ब्राह्मण बनाया है| अतः मेरी पीड़ा का कारण भी मुझे बताइए|” 

नारद मुनि ने बालक से कहा - “तुमने पीपल के पत्तों को खाकर घोर तप किया है| इसलिए आज से तुम्हारा नाम पिप्पलाद रखता हूं| जहां तक तुम्हारे कष्टों की बात है तो उसका कारण शनि ग्रह है जिसके अहंकार वस धीमी चाल के कारण तुम्हारे साथ ही पूरा जगत भी अकाल की पीड़ा भोग रहा है|”

यह सुनकर वह बालक क्रोधित हो गया उसने  क्रोध में आकर जैसे ही आकाश में विचरण कर रहे शनि देव को देखा| तब शनि ग्रह बालक पिप्पलाद के तेज बल से जमीन पर एक पर्वत पर आ गिरे| जिससे वह अपंग हो गए| शनि की ऐसी दुर्दशा देखकर नारद मुनि खुश हो गए| 

उन्होंने सभी देवी देवताओं को यह देखने के लिए बुलाया| तब उस जगह पर ब्रह्मदेव सहित अन्य देवों ने आकर बालक पिप्पलाद के आवेश को शांत करके उससे कहा कि नारद मुनि द्वारा रखा गया तुम्हारा नाम श्रेष्ठ है और आज से तुम पूरे जगत में इसी नाम से प्रसिद्ध होगे| जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन पिप्पलाद नाम का ध्यान कर पूरी श्रद्धा और भावना से पूजा करेगा उसको शनि ग्रह के कष्टों से छुटकारा मिलेगा और उसको संतान सुख भी प्राप्त होंगे| 

ब्रह्मदेव ने साथ ही पिप्पलाद को शनि ग्रह की शांति के लिए उनकी पूजा और व्रत का विधान बता कर कहा - “ तुम शनि देव को अपने स्थान पर प्रतिष्ठित कर दो क्योंकि वह निर्दोष है|” 

पिप्पलाद ने ब्रह्मा देव के आदेश का पालन किया और उनसे शनि देव का व्रत विधि जानकर जगत को शनि ग्रह की शांति का मार्ग बताया इसलिए शनि ग्रह की शांति के लिए शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के साथ ही शनिदेव के पूजन की परंपरा है|

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तो दोस्तों! शनि देव की कहानी और शनिवार के दिन व्रत रखने का कारण पता चल गया होगा|आप Comment करके बताइए आपको यह कहानी कैसी लगी| आप ऐसी कहानी पढ़ना चाहते हैं तो (exomations.blogspot.com) पर पढ़ सकते हैं|


 

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